ज्योतिषीय दृष्टिकोण में सुःख एवं दुःख

 ज्योतिषीय दृष्टिकोण में सुःख एवं दुःख

भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी के भी जीवन में सुःख एवं दुःख से सम्बंधित जो भी प्राप्ति होती है वह जन्मकालीन योग एवं ज्योतिषीय महादशा, अंतरदशा, प्रत्यन्तर्दशा और इनके ग्रहों के गोचर के ऊपर ही निर्भर रहती है...

लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि इंसान के जीवन में चाहे कोई भी दशा हो और ग्रह गोचर कैसा भी हो एवं कुंडली में कोई भी योग हो और चाहे कितनी भी संख्या में योग हों, अधिकतम सुख 40% और न्यूनतम दुःख 60% ही निर्धारित है...!

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अधिक स्पष्टता के लिए, सदैव स्मरण रहे कि, ज्योतिषीय व्यवस्था में किसी के भी जीवन में अधिकतम सुख 40% ही निर्धारित है अर्थात कोई भी व्यक्ति इससे अधिक तो दूर की बात है इतना भी नहीं पा सकता है...

और न्यूनतम दुःख 60% ही निर्धारित है अर्थात इस सीमा को कोई भी व्यक्ति कम नहीं कर सकता बल्कि इसमें बृद्धि ही करता है...!

उपरोक्त दोनों स्थितियां सभी ग्रहों के उनके सभी बारह भावों में गोचर पर निर्धारित होती हैं ...!

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उदहारण के लिए सूर्य ग्रह अपने गोचर के समय में एक राशि में एक माह (30 दिन) ही रहता है अर्थात वह बारह माह बाद पुनः उसी स्थिति में आ जाता है, यह उसकी एक निर्धारित ज्योतिषीय प्रक्रिया है...

लेकिन यहाँ विशेष बात यह है कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जब किसी कुंडली में सूर्य अपने गोचर काल के समय लग्न से तृतीय, षष्टम, दशम और एकादश भाव (कुल बारह में से केवल चार भाव) में ही रहता है तभी अपना शुभ फल दे पाने में सक्षम होता है...

यहां अति विशेष बात यह है कि यदि सूर्य अपना पूरा शुभ फल भी दे दे तो भी वह 33.33% ही हुआ क्योंकि बारह माह में वह केवल चार माह ही फलदायी हुआ...

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि 33.33% फल भी वह तभी दे पायेगा जब उस पर किसी भी अन्य ग्रह का कोई अशुभ प्रभाव नहीं हो और ऐसा होना संभव ही नहीं हो सकता है...!

इस बात को केवल ज्योतिष का वरिष्ठ विद्यार्थी या कोई ज्ञानी एवं अनुभवी ज्योतिष शास्त्री ही समझ सकता है...!

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उपरोक्त दोनों स्थितियों (40% एवं 60%%) में कुछ सीमित परिवर्तन केवल विज्ञान, ज्योतिष और आध्यात्म से ही संभव है और इसके लिए समय रहते किसी ज्ञानी एवं अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श ही एकमात्र उपाय है...!

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सामान्य व्यक्ति के लिए मेरा ज्योतिषीय एवं व्यक्तिगत परामर्श है कि वह अपने जीवन में चमत्कार की आशा छोड़ सर्वप्रथम अपने लिए ईमानदारी से सुःख एवं दुःख की स्पष्ट एवं स्थायी परिभाषा निर्धारित करे और उसके लिए अपने प्रयासों और अपनी क्षमताओं का ईमानदारी से आकलन करे, मात्र इतने से ही उसके बहुत सारे भ्रम दूर हो जायेंगें...!

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उपरोक्त कथन को किसी के मानने या ना मानने से इसमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है...!

इस सम्बन्ध में समय रहते बुद्धि एवं विवेक का सही इस्तेमाल ही कोई भी सुखद परिणाम दे सकता है...!

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अग्रिम शुभकामनायें ...!

सुभाष वर्मा ज्योतिषाचार्य

www.AstroShakti.in

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