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Showing posts from May, 2022

Why Astrology

   Astro Shakti Classses ज्योतिष जरूरी क्यों (1) यदि हम एक सरल , सुखद एवं सफल जीवन के लिए कम से कम आठवीं या दसवीं तक की शिक्षा को जरूरी मानते हैं तो ज्योतिष की कम से कम सामान्य जानकारी भी सभी को होनी चाहिए ऐसा भी हमें मानना चाहिए अर्थात ज्योतिष सीखने का अर्थ यह नहीं कि हमें ज्योतिषी का ही काम करना है (2) यदि अपने सभी कष्टों या समस्याओं के लिए सदैव दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति से बचना है तो स्वयं को जानना होगा और इसके लिए ज्योतिष से उत्तम माध्यम और कुछ हो ही नहीं सकता है (3) ज्योतिष के माध्यम से ही समय समय पर दिमाग में घूमने वाले बहुत सारे भ्रमों से भी मुक्ति मिल सकती है अर्थात जीवन के रहस्यों को जानने के लिए ज्योतिष से उत्तम और कुछ नहीं (4) ज्योतिष के माध्यम से ही दूसरों को जानने और समझने अर्थात पहचानने की क्षमता विकसित हो सकती है और तत्पश्चात जीवन में हानि को कम और लाभ को बढ़ाया जा सकता है (5) ज्योतिष जीवन को स्पष्ट दिशा देता है और यदि समय रहते इसको विज्ञान और आध्यात्म (विवेक) का साथ मिल जाय तो निश्चित रूप से जीवन अधिक सुखदायी हो सकता है (6) सामान्य ज्योतिष की जा

जीवन की शब्दावली

  जीवन की शब्दावली मानव जीवन में बहुत सारी शब्दावलियाँ हैं लेकिन यदि समय रहते कुछ शब्दावली में थोड़ा सा बदलाव कर लिया जाय तो निश्चित रूप से जीवन में स्थिति और अधिक सुखद हो सकती है इसलिए वो कौन सी शब्दावली है जिनमें बदलाव लाभकारी हो सकता है यह जानने का एक ईमानदार प्रयास करते हैं :- ------------------------ 1. क्रोध के स्थान पर क्षमा को 2. घृणा के स्थान पर दया को 3. निराशा, हताशा के स्थान पर आशा को 4. कुंठा के स्थान पर विश्वास को 5. आक्रामकता के स्थान पर नियन्त्रण को 6. हार, हानि, दुःख, कष्ट के स्थान पर अनुभव को 7. स्थायी के स्थान पर अस्थायी को 8. साथी के स्थान पर साझीदार को 9. चिंता के स्थान पर चिंतन को 10. चमत्कार के स्थान पर सच्चाई को # स्थायी रूप से स्थान एवं सम्मान देने का प्रयास करें ------------------------ # इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की भ्रम या दुविधा की स्थिति में यदि आप समय रहते विज्ञान, ज्योतिष और आध्यात्म का सहारा या सहयोग ले लेंगें तो परिणाम अत्यधिक सुखद प्राप्त हो सकते हैं # मेरी तरफ से उपरोक्त सुझाव सभी के लिए हैं लेकिन इसको मानना या चरितार्थ करने की किसी को कोई बाध्यता

सरल वास्तु सुझाव

  सरल वास्तु सुझाव 1. घर में सफाई के लिए पोंछा नमक के पानी का लगाएं एवं अंदर से बाहर की तरफ ही पोंछा लगाने की प्रक्रिया को अपनाएं 2. रसोईघर में कुछ भी बनाते समय मुहँ पूर्व की तरफ ही होना चाहिए 3. स्वस्थ व्यक्ति को पूर्व या उत्तर की तरफ ही मुहँ करके कुछ भी खाना चाहिए 4. अस्वस्थ या बीमार व्यक्ति को उत्तर की तरफ ही मुहँ करके ही कुछ भी खाना चाहिए विशेषकर औषधि 5. पढ़ाई एवं परीक्षा की तैयारी के लिए मुहँ सदैव पूर्व की तरफ ही होना चाहिए 6. पूरक परीक्षा या पुनः परीक्षा के लिए सदैव उत्तर की तरफ ही मुहँ करके ही तैयारी करें 7. स्वस्थ व्यक्ति को सदैव पूर्व या दक्षिण की तरफ ही सिर करके सोना चाहिए 8. बीमार व्यक्ति का सिर सदैव दक्षिण की तरफ ही होना चाहिए और मुहँ उत्तर की तरफ 9. स्नान करते समय मुहँ सदैव पूर्व या उत्तर की तरफ ही होना चाहिए 10. आलमारी या लाकर को दक्षिण की दिवार के साथ रखें अर्थात उसका दरवाजा उत्तर की तरफ ही खुलना चाहिए 11. ईशान कोण में मंदिर बनाकर लोग खुश हो जाते हैं जबकि अधिकांशतः (99% तक) घरों में पूजा स्थान या मंदिर की स्थिति ठीक नहीं रहती है इस विषय में अविलम्भ किसी ज्ञानी एवं अनुभवी

कुछ उपयोगी सुझाव

  कुछ उपयोगी सुझाव इंसान की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह अपने सुखद और सफल जीवन के लिए हर संभव प्रयास करता रहता है लेकिन शायद ही वह कभी प्राप्त परिणामों से संतुष्ट हो पाता है अर्थात असंतुष्टि जीवन भर उसका पीछा नहीं छोड़ती है ऐसे लोगों के लिए मेरे पास कुछ सुझाव हैं जिनको चरितार्थ करके शायद उनको कुछ लाभ मिल सकता है ------------------------ 1. अपने लक्ष्य को ईमानदारी के साथ पूरा सम्मान दें 2. अपने प्रति ईमानदार बनें अर्थात अपने आप को धोखा ना दें 3. अपनी क्षमताओं और सीमाओं का ईमानदारी से आकलन करें 4. नकारात्मक, कुतर्की एवं अंधविश्वासी मानसिकता वाले लोगों से दूर रहें 5. अपने किसी भी समस्या या कष्ट के लिए दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति से बचें 6. ईमानदारी से अपने लिए सुखद और सफल जीवन की परिभाषा को निर्धारित करें 7. जिंदगी में नीयत और नियति के अर्थ और अंतर को समझने का ईमानदारी से प्रयास करें 8. अपनी समस्याओं या कष्टों के निवारण के लिए अपनी आस्था या चमत्कार के भरोसे ना रहें 9. बहुत कुछ खो कर ही कुछ पाने की प्रवृत्ति या मानसिकता से दूर रहने का प्रयास करते रहें 10. प्रतिदिन कुछ समय अपने क्रिया

विवाहित जीवन में बाधा क्यों

  विवाहित जीवन में बाधा क्यों सामान्यतः सभी के विवाहित जीवन में समय समय पर कुछ ना कुछ समस्याएं अवश्य आती ही रहती हैं इसलिए इसको एक सामान्य सी होने वाली नैसर्गिक प्रक्रिया मान सकते हैं या मानना भी चाहिए, लेकिन कभी कभी ये समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं और फिर परिणाम की कल्पना आप अपने बौद्धिक स्तर के अनुसार कर सकते हैं जो जग जाहिर है कि क्या क्या होता है, आप कुछ भी कर लो इन समस्याओं को आप रोक नहीं सकते अर्थात चाहे आप ज्योतिष को मानो या ना मानो या कोई भो और कितना भी उपाय कर लो क्योंकि इसके एक नहीं अनेकों कारण होते हैं ------------------------ ज्योतिषीय दृष्टिकोण से क्या कुछ कारण हो सकते हैं जब विवाहित जीवन में समस्याएं आ सकती हैं, इन्हीं पर हम प्रकाश डालने या समझने का एक ईमानदार प्रयास करते हैं (यह मात्र कुछ संभावनाएं हैं इसलिए इनको अंतिम फलादेश ना समझें या मानें) ------------------------ 1. लग्न कुंडली में सप्तमेष का सम्बन्ध यदि मंगल या सूर्य या शनि या राहु से हो तब विवाहित जीवन में समस्याएं आ सकती हैं 2. लग्न कुंडली में सप्तमेष का सम्बन्ध यदि षष्टेष या अष्टमेष या द्वादशेष से हो तब

स्वयं सिद्ध मुहूर्त (शुभ दिवस)

  स्वयं सिद्ध मुहूर्त (शुभ दिवस) प्रचलित मान्यता है या ऐसा माना जाता है या कहा जाता है कि "यदि कोई कार्य किसी शुभ समय या काल में आरम्भ किया जाय तो उसकी सफलता की पूरी सम्भावना रहती है" और इसको मान लेने में कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि यह एक सकारात्मक सोच को भी दर्शाती है लेकिन किसी आम इंसान के लिए किसी भी कार्य को आरम्भ करने के लिए किसी शुभ काल या समय को जानना असंभव नहीं तो अत्यंत मुश्किल अवश्य है क्योंकि इसके लिए निःसंदेह किसी ज्ञानी एवं अनुभवी ज्योतिषी से ही परामर्श लेना होगा और यह सभी के लिए सदैव संभव नहीं है इसलिए भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक वर्ष में पांच ऐसे दिन निर्धारित हैं जिस दिन कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करने के लिए किसी से कुछ भी पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है और इसीलिए इन्ही पांच दिनों को स्वयं सिद्ध मुहूर्त (शुभ दिवस) के नाम से जाना या माना जाता है इन पांच स्वयं सिद्ध मुहूर्त (शुभ दिवस) का विवरण निम्नलिखित है :- ------------------------ (1) चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, प्रतिप्रदा अर्थात चैत्र नवरात्री का पहला दिन (2) चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, नवमी अर्थात श्री रामनव

सूर्य का कष्टकारी गोचर प्रत्येक वर्ष में

  सूर्य का कष्टकारी गोचर प्रत्येक वर्ष में 1. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि मेष राशि में है तो 15 अगस्त से 14 सितम्बर तक का समय कष्टकारी हो सकता है 2. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि वृषभ राशि में है तो 15 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक का समय कष्टकारी हो सकता है 3. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि मिथुन राशि में है तो 15 अक्टूबर से 14 नवंबर तक का समय कष्टकारी हो सकता है 4. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि कर्क राशि में है तो 15 नवम्बर से 14 दिसम्बर तक का समय कष्टकारी हो सकता है 5. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि सिंह राशि में है तो 15 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय कष्टकारी हो सकता है 6. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि कन्या राशि में है तो 15 जनवरी से 14 फरवरी तक का समय कष्टकारी हो सकता है 7. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि तुला राशि में है तो 15 फरवरी से 14 मार्च तक का समय कष्टकारी हो सकता है 8. लग्न कुंडली या चंद्र कुंडली में सूर्य यदि वृश्चिक में है तो 15 मार्च से 14 अप्रैल तक का समय कष्टकारी हो सकता है 9. लग्न

ज्योतिषीय दृष्टिकोण में सुःख एवं दुःख

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  ज्योतिषीय दृष्टिकोण में सुःख एवं दुःख भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी के भी जीवन में सुःख एवं दुःख से सम्बंधित जो भी प्राप्ति होती है वह जन्मकालीन योग एवं ज्योतिषीय महादशा, अंतरदशा, प्रत्यन्तर्दशा और इनके ग्रहों के गोचर के ऊपर ही निर्भर रहती है... लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि इंसान के जीवन में चाहे कोई भी दशा हो और ग्रह गोचर कैसा भी हो एवं कुंडली में कोई भी योग हो और चाहे कितनी भी संख्या में योग हों, अधिकतम सुख 40% और न्यूनतम दुःख 60% ही निर्धारित है...! -------------------------------- अधिक स्पष्टता के लिए, सदैव स्मरण रहे कि, ज्योतिषीय व्यवस्था में किसी के भी जीवन में अधिकतम सुख 40% ही निर्धारित है अर्थात कोई भी व्यक्ति इससे अधिक तो दूर की बात है इतना भी नहीं पा सकता है... और न्यूनतम दुःख 60% ही निर्धारित है अर्थात इस सीमा को कोई भी व्यक्ति कम नहीं कर सकता बल्कि इसमें बृद्धि ही करता है...! उपरोक्त दोनों स्थितियां सभी ग्रहों के उनके सभी बारह भावों में गोचर पर निर्धारित होती हैं ...! ------------------------------------ उदहारण के लिए सूर्य ग्रह अपने गोचर के समय में एक राशि में ए

6-8-12 का जाल

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  6-8-12 का जाल मैं पिछले 10 साल से परेशान हूँ मेरा कोई काम नहीं हो पा रहा है मैनें सारे उपाय कर लिए फिर भी कुछ लाभ नहीं मिला मैनें लाखों रुपये फूंक दिए फिर भी कुछ नहीं हुआ अब मेरा ज्योतिष और ज्योतिषी पर से विश्वास पूरी तरह से उठ गया है ज्योतिषी के रूप में ऐसी बातें जातक से हमें अक्सर सुनने को मिलती ही हैं --------------------------------- ज्योतिष के नजरिये से बात करें तो 6, 8, 12, भाव, कष्टकारी भाव के रूप में देखे जाते हैं और पहली बात यह कि कुंडली के 6, 8, 12, भावों के भावेश की जब भी महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा होगी तब स्थितियां प्रतिकूल ही होंगीं दूसरी बात 6, 8, 12, भावों में बैठे ग्रह की जब भी महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा होगी तब स्थितियां प्रतिकूल ही होंगीं तीसरी बात गोचर में जब भी लग्न या लग्नेश 6, 8, 12, भाव या इनके भावेशों से पीड़ित होगा तब स्थितियां प्रतिकूल ही होंगीं -------------------------------- यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि 6, 8, 12, भावों या इनके भावेशों से कोई भी कभी भी अछूता नहीं रहता है अर्थात जितने अधिक उपरोक्त वर्णित स्थितियां बनेंगीं उतने अधिक कष्ट की स

जातक ना बनें ज्योतिषी

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  जातक ना बनें ज्योतिषी जातक उस व्यक्ति को कहा जाता है जो ज्योतिषी के पास परामर्श के लिए जाता है, आजकल आधे-अधूरे ज्ञान या जानकारी से लैस जातकों की भरमार है अर्थात किसी ज्योतिषी के पास परामर्श के लिए जाने से पहले वह सोशल मीडिया और ऑनलाइन लिंकों पर बहुत कुछ जान लेता है (ऐसा उसको लगता है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है सिवाय ग़लतफ़हमी के) अपने हर सवाल के जबाब के लिए गूगल पर आश्रित जातकों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है और आज नौजवान पीढ़ी लगभग पूरी तरह इसके गिरफ्त में है, नतीजा सहज रूप से देखा जा सकता है कि परिणाम क्या निकल कर आ रहा है विशेषकर विवाह से पहले या विवाह के बाद वाले जीवन के सम्बन्ध में...! सोशल मीडिया और ऑनलाइन लिंकों पर प्राप्त जानकारी से लैस जातक खुद ही ज्योतिषी को अपनी जानकारी के हिसाब से ही रत्नों को धारण करने की बात करता है या फिर पूजा-पाठ या मंत्र जाप के लिए भी जोर देता है बिना यह समझे कि क्या सही है या क्या गलत है और ऐसे में ज्योतिषी भी कभी कभी नहीं बल्कि अक्सर भ्रमित हो जाता है, ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है... जातक की इस कृति से केवल उसी का नुक्सान होता है और वह सही परामर्श से अक

दिशा-संभावना-परिणाम

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  दिशा-संभावना-परिणाम आजकल ज्योतिष और ज्योतिषी से लोगों की शिकायतें काफी बढ़ गयी हैं दूसरे शब्दों में इन पर आम लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है , क्या कारण है इस पर थोड़ा ईमानदारी से विचार करने का प्रयास करते हैं…… मैं बार बार इस बात पर जोर देता रहता हूं कि जातक, ज्योतिष को चमत्कारिक विषय या वस्तु और ज्योतिषी को चमत्कारिक व्यक्ति के रूप में ना लें लेकिन इसमें कोई भी परिवर्तन नज़र नहीं आ रहा है, कारण दोनों में से कोई भी बदलने को तैयार नहीं है लेकिन अपवाद सभी क्षेत्रों में है और स्वाभाविक है कि यहाँ भी होगा…. पहली बात यह कि आजकल मुफ्त में कंप्यूटर या मोबाइल पर ऑनलाइन कुंडली बनाओ-कुंडली मिलान करो- कुंडली भविष्यफल जानो की भरमार है और आम तौर पर लोग इसका पूरा पूरा उपयोग भी कर रहे हैं इससे ज्योतिष और जातक दोनों का खूब नुक्सान हो रहा है..... क्या कोई कंप्यूटर किसी की सही कुंडली बना सकता है या उसकी विवेचना कर सकता है, जी बिलकुल नहीं, ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है बाकी आप लोग सोचियेगा...? दूसरी बात यह कि ज्योतिष की किताब से कुछ लाइनें उठा कर सोशल मीडिया पर अपने नाम से पोस्ट करने वालों की भरमार है,

ज्योतिष जरूरी क्यों

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  ज्योतिष जरूरी क्यों (1)  यदि हम एक सरल, सुखद एवं सफल जीवन के लिए कम से कम आठवीं या दसवीं तक की शिक्षा को जरूरी मानते हैं तो ज्योतिष की कम से कम सामान्य जानकारी भी सभी को होनी चाहिए ऐसा भी हमें मानना चाहिए (2)  यदि अपने सभी कष्टों या समस्याओं के लिए सदैव दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति से बचना है तो स्वयं को जानना होगा और इसके लिए ज्योतिष से उत्तम माध्यम और कुछ हो ही नहीं सकता है (3)  ज्योतिष के माध्यम से ही समय समय पर दिमाग में घूमने वाले बहुत सारे भ्रमों से भी मुक्ति मिल सकती है अर्थात जीवन के रहस्यों को जानने के लिए ज्योतिष से उत्तम और कुछ नहीं (4)  ज्योतिष के माध्यम से ही दूसरों को जानने और समझने अर्थात पहचानने की क्षमता विकसित हो सकती है और तत्पश्चात जीवन में हानि को कम और लाभ को बढ़ाया जा सकता है (5)  ज्योतिष जीवन को स्पष्ट दिशा देता है और यदि समय रहते इसको विज्ञान और आध्यात्म (विवेक) का साथ मिल जाय तो निश्चित रूप से जीवन अधिक सुखदायी हो सकता है (6)  सामान्य ज्योतिष की जानकारी होने के पश्चात ही व्यक्ति कुतर्की प्रवृत्ति और बहुत कुछ खो कर थोड़ा सा पाने या सीखने की प्रवृत्ति से मुक्